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वैभव का उभार दुधारी तलवार

Manthan
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अमूमन हम पहले पैसा कमाते हैं अपनी न्यूनतम जरूरतें पूरी करने के लिए फिर पैसे से आरामदायक जिन्दगी जीना चाहते हैं सुविधा की हर वस्तु खरीदना चाहते हैं लेकिन हमारी चाहत बढ़ती जाती है | हम अपने हम उम्र साथियों को नीचा दिखा कर खुद को उनसे बेहतर सिद्ध करने की दौड़ में लग जाते हैं | जो दुःख अभाव हमने बचपन में देखे थे वह हमारे बच्चों को न देखना पड़े,अपने मन में पाली आत्मग्लानि से बचने के लिए भी जोर मारते हैं उनकी जिन्दगी टेलर मेड बनाना यानि अपने अनुसार गढ़ना चाहते हैं |यहीं से शुरू होती है पैसे के बल पर बच्चों के भविष्य बनाने की स्पर्धा इस आपाधापी में हम उन्हें समय ही नहीं दे पाते | ध्यान ही नहीं रहता कुछ लोग अपने गलत आचरण से यानी शराब जुआ अय्याशी और देर से घर आना कभी नहीं भी आना बच्चों के मन मस्तिष्क को विषैला कर देते हैं | उन्हें होश ही नहीं रहता पैसा कमाने के लिए रिश्वत खोरी ,खून खराबे की कमाई का काला धन घर में लाकर बच्चों रूपी पौधों की जड़ में कैसी खाद डाल रहे हैं? बच्चे जो मांगते हैं उन्हें सब कुछ देते हैं फिर अगर आपका बच्चा तेज रफ्तार से कार के नीचे किसी को कुचल दे या गुमराह हो कर अनैतिक कमाई करने लगे ऐबों में पड़ जाये पैसे से उसको बचाने के लिए जी जान लगा देते हैं | पैसे को ही दुनिया का आखिरी पारितोषिक समझते हैं| इसी बीच समाज बिगड़ते बच्चों को ठीक से संस्कार न दे पाने की सीख देता रहता है चाहते हैं समाज जान न पाये उनका बच्चा गुमराह हो गया है अपराध की दुनिया की तरफ जा रहा है | माता पिता पहले अपना आचरण घर और बाहर सुधारें तभी अगली पीढ़ी सुधरेगी यही नहीं गलत आचरण करने वालों, पैसा, पैसा है वह काला या गोरा नहीं होता ऐसी सोच वालों का घर में स्वागत नहीं होना चाहिए हो सके तो उनसे सम्बन्ध ही न रखे बच्चों से उन्हें दूर रखें| अपराधों पर कानून तुरंत सजा दे| जब समाज सुधरने लगे फिर संस्कार की बात करें संस्कार घुट्टी नहीं है जिसे हम जबरदस्ती बच्चों को पिला नहीं सकते | आपके अपने अच्छे आचरण बच्चों को संस्कारित करते हैं |

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