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दूध ,खोया (मावा )एवं चाकलेट युद्ध
जब भी कोइ भारतीय त्यौहार नजदीक आने लगते हैं तभी टी.वी.चैनलों और अखबारों में दूध व् मावे में मिलावट का किस्सा शुरू हो जाता है यदि यह पूरे साल चले तो खाद्य पदार्थ की मिलावट रोकने वाले सरकारी महकमें वर्ष भर मुस्तैदी से अपना काम करें ताकि यह मिलावट का कारोबार रोका जा सके| कई बार ऐसा लगता हैं प्रायोजित तरीके से चाकलेट और ऐसी ही चीजों के विज्ञापन करने का नायाब तरीका त्यौहार के अवसरों पर ढूंढां गया हैं | हालाकि यह सब सरकारी विभागों की ढिलाई के कारण होता हैं| अगर दूध , मावा या दूसरे दूध के प्रोडक्ट ( दूध से तैयार मिठाइयां )की पोष्टिकता का विश्लेषण किया जाए शरीर खास कर बच्चों के स्वास्थ्य और विकास के लिए अधिक उपयोगी हैं |सभी जानते हैं हमारे देश की बहुत बड़ी आबादी शाकाहारी है इसलिए प्रोटीन की आपूर्ति के लिए दूध ,पनीर और दूध से बनी वस्तुयें लाभकारी हैं| टी.वी.के माध्यम से किये गये दुष्प्रचार से लोग मिठाईयों को खाने से बचने लगे हैं| |बच्चों को कुपोषण का शिकार बनाया जा रहा हैं |चैनलों का उद्देश्य केवल पैसा कमाना नहीं होना चाहिए आगे आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए |कुछ मिठाई की दुकानों वाले भी गुनाहगार हैं वह यदि अपने यहाँ प्रयुक्त होने वाले दूध और मावे की क्वालिटी का ध्यान रखें तो यह लड़ाई जीती जा सकती है नहीं तो हर वर्ष त्योहारों के मौसम में नकली दूध और मावे के खिलाफ नगाड़े बजाना देश का बहुत बड़ा नुकसान कर रहा है सरकार को खाद्य विभाग पर दबाब देना चाहिए वह बारह महीने खाद्य पदार्थों की चेकिग करें|खाद्य विभाग के आराम से बैठे रहने के कारण ही यह मिलावट की बातें जनता के सामने बार-बार आती हैं अगली पीढ़ी को पोषण युक्त खोये की मिठाईयों से दूर करती जा रही हैं | आने वाली पीढ़ी भी मजेदार दूध और खोये से बनी मिठाईयों के स्वाद से वंचित रह कर चित्रों में मिठाईयों को देखेंगे और केवल चाकलेट को ही जानेंगे |इन चाकलेट के विज्ञापनों पर जम कर पैसा खर्च किया जाता है बड़े-बड़े अभिनेता इनके विज्ञापन करते हैं | त्योहारों में उपहार क्या रह गये हैं बड़े-बड़े चाकलेट के खूबसूरत डिब्बे जिनमें थोड़ी सी चाकलेट यही चलन बनता जा रहा है |
डॉ अशोक भारद्वाज
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