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पौष्टिक आहार पर बाजारवाद की मार

Manthan
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पौष्टिक आहार पर बाजार वाद की मार

खाने पीने के प्रोडक्टस के विज्ञापनों द्वारा बच्चों की सेहत के साथ किस प्रकार खिलवाड़ किया जा रहा है जिसका दूरगामी असर दिखेगा, इससे बच्चे कुछ वर्षों बाद या तो बहुत कमजोर या बहुत वजनी हो जायेंगे |इन दोनों परिस्थितियों में उनका शरीर बिमारियों के चंगुल में फस जाएगा और देश की भावी नस्ल कमजोर रह जायेगी | स्नैक्स और ह्वा भरे पैकटों में खाद्य पदार्थों को उनकी न्यूट्रीशिनल महत्व  और कीमत को तुलनात्मक तरीके से देखने पर पता चलता है हमारे देश में पहले से ही कुपोषण के शिकार बच्चों को क्या खिलाया जा रहा  है | माता पिता  जानते ही नहीं उनके रूपये की कीमत पर उनको ठग कर क्या दिया जा रहा है? लुभावने विज्ञापन बच्चों को इस तरह मोहित करते हैं बच्चा उसी खाद्य पदार्थ को खाने की जिद पकड़ लेता है| इन विज्ञापनों के लिए अभिनेता अभिनेत्रियों को बेशुमार राशी दी जाती है| बाजार भी इन आकर्षक विज्ञापन वाली बस्तुओं से पटे रहते हैं |आज विज्ञापन आता हैं बाजार में उसी वस्तु की बच्चे मांग करने लगते हैं |  पेय पदार्थ जिन्हें साफ्ट ड्रिंक कहा  जाता है उन्हें कुपोषण के शिकार बच्चे बड़े चाव से खरीदते हैं  हैं यही नहीं महंगे पेय जिनके लिए खरीदना मुश्किल है वह थैलियों में या ठेलों पर नकली रंग डाल कर बनाये गये ठंडे शरबत गरीब बच्चे खरीद कर उनकी देखा देखी  में बड़े चाव से पीते हैं सस्ते रंगों से उनकी जुबान तक रंग जाती है |यह  शरबत या सस्ती आईसक्रीम में पड़े रंग हानिकारक होते हैं बच्चे नहीं समझते जबकि उन्हें पोष्टिक या अच्छे आहार की जरूरत होती है |कम आमदनी वाले लोग खाते पीते और सम्पन्न वर्ग के बच्चे क्या क्या खाते हैं या पीते हैं यह देख कर प्रतिस्पर्धा में अपने बच्चों को खरीद  कर देते हैं कहीं उनका बच्चा हीन  भावना  का शिकार न हो जाए यह न सोचे उनके माता पिता उन्हें विज्ञापनों की चमचमाती दुनिया से वंचित  कर हैं| इस कीमत पर वह अपने बच्चों को जरूरी स्वास्थ्य वर्धक भोजन जिसमें ,विटामिन प्रोटीन , मिनरल और वसा सब हो (संतुलित भोजन )  दे सकते हैं गरीब परिवारों में अन्न का अभाव रहता हैं वह भी इन वस्तुओं को पाना चाहते हैं| विज्ञापनों को देख कर अभिनेता अभिनेत्रियों की अंधानुकरन  की लालसा बच्चों में जगती है वह  सोचते हैं वह भी ऐसे ही बन जायेंगे | इस मुश्किल का हल सरकार के पास भी नहीं है गरीबी के मारे लोग नसीहत को यह मान कर चलेंगे वह गरीब हैं इसलिए उनके बच्चों को वंचित रखने की कोशिश की जा रही है | इसलिए सरकार की तरफ से ऐसे विज्ञापन आने चाहिए पहले पोष्टिक आहार खायें बाद में स्नैक्स या साफ्ट  ड्रिंक मिलेगा | आम भाषा में पहले प्लेट में रक्खी रोटी ,सब्जी दाल खाओ उसे पूरी खत्म करो फिर चाकलेट या बिस्कुट मिलेंगे | सरकार को सब्जियों , अण्डों और दूध का विज्ञापन करना चाहिए जिससे भविष्य की पीढ़ियों को कुपोषण से बचाया जा सके माता पिता  द्वारा खर्च किये गये पैसे का उचित पोषण की वस्तुओं में इस्तेमाल हो सके|

पेय पदार्थ हों या दूध में मिलाने वाले भांति – भांति के पाउडर या फिर हवा से भरे पैकेट में बेचे जाने वाले हल्के स्नैक्स या फिर ऐसे साफ्ट ड्रिंक जिसमें न्यूट्रीशनल तत्वों के नाम पर केवल मिठास और रंग है इसका भी प्रचार किया जाए|जनता इसे समझ सके अपने बच्चों को समझा सके | इन्हें यदि सम्पन्न वर्ग प्रयोग करता है उसे फर्क नहीं पड़ता वह पौष्टिक या  पौष्टिकता से भी अधिक भोजन करते हैं और इन वस्तुओं का सेवन वह वैसे ही करते रहते हैं पर उनकों देख कर हीं भावना का शिकार वंचित गरीब सम्पन्न वर्ग की नकल करता हैं वह अपने स्वास्थ्य को खराब करता हैं अक्सर बीमार पड़ता

भगवान् की रचना यह शरीर अगर पुष्ट हो जो हानिकारक तत्व सब्जियों या अनाज में आजकल आ रहे हैं वह  हमारे यकृत(जिगर )तथा गुर्दों की सहायता से यथा समय बाहर निकाल दिए जाते हैं यह लेबोरेट्री की तरह हानिकारक तत्वों को बेअसर करने में सक्षम हैं | इसीलिए जितना शरीर पुष्ट होगा उतना इन मिलावटों से लड़ने में  सक्षम होगा इसीलिए पौष्टिक आहार व् कसरत ही शरीर को स्वस्थ करने के लिए जरूरी है |स्वस्थ जीवन का यही फंडा है लोग देर सबेर इसी पर आ जायेंगे          डॉ अशोक भारद्वाज

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