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पराजीवियों की फौज
आजादी के बाद राजनीतिक पटल पर आये राजनेताओं ने बिना पसीना बहाये कमाने वालों की फौज खड़ी कर दी है जिससे काला धन ,खून से सना काला धन दोनों ही कमाए गये | इसका अंजाम यह हुआ पैसा बस पैसा है जिसे किसी भी तरह कमाना जीविका अर्जित करना ज्यादातर लोगों का ध्येय हो गया ईमानदारी, आदर्श और सच्चाई सभी का ह्रास होता रहा है अब देश बदलते दिनों की बयार महसूस कर रहा है लेकिन सभी पराजीवियों का पोषण कैसे होगा या फिर यह कैसे बदलेंगे ? भ्रष्टाचार में डूबने की पराकाष्ट यहाँ तक हो गई है कोई काम हथेली गर्म किये बिना होना मुश्किल है सरकारी दफ्तर के बाहर किसी चाय के खोके या पान की दूकान पर खड़े होकर कहिये कि इस दफ्तर में अमुक काम रुका हुआ है क्या करे चाय वाला, पान के खोके वाला अपना काम छोड़ कर आपके काम के लिए रिश्वत का रास्ता तुरंत बता देगा साथ ही अपनी कमीशन भी तय कर लेगा| ऐसे अनेक क्षेत्र है जहाँ भ्रष्टाचार जम कर पनपता है |राज नेताओं से दोस्ती कर दलाली खाने वाले ,ठेके दारी प्रथा के द्वारा दोहन करने वाले , किसी काम का ठेका, पेट्रोल पंप , गैस एजेंसी , कोटा परमिट दिलाने के नाम पर कमाने वाले और NGO के नाम से देश विदेशों से धन दोहन करने वालों की भरमार है | वृद्धों की पेंशन के नाम से भी रिश्वत की मांग की जाती है कई जगह पकड़े जाने पर आरोपी के साथ एकता दिखाने के लिए साथ के हम पेशा लोग हड़ताल कर भाई चारा दिखाते हैं | कई रिश्वत खाने वालों के घर रिश्वत का पैसा गिनने की मशीन रखी जाती है | इतनी कमाई कि गिनना मुश्किल है |
रिश्वत खाने के लिए बाबुओं और अफसरों के दलाल वसूली के लिए रखे जाते हैं| कुछ तो महीने की तनखा पर रखें गये हैं या कमिशन पाते हैं यह कारोबार बड़े सुचारू रूप से चल रहा है लेकिन पूरी व्यवस्था को गला रहा था | अब सरकार पारदर्शिता की बात करती हैं इससे भ्रष्टाचार पर लगाम भी लगेगी और यह स्वाभाविक है यह सारे परजीवी , बिना खून सुखाये और पसीना बहाए कमाने वाले , एक साथ लामबंद होने की पूरी कोशिश करेंगे | भगवान इनसे देश को बचाए क्यों कि पराजीवियों को श्रम की आदत बहुत मुश्किल से पडती है |
आजादी के बाद से भ्रष्टाचारी इस तरह बेलगाम बढ़ते जा रहे हें वह दिन दूर नहीं जब भ्रष्टाचारी अपनी एक यूनिवर्सिटी खोल ले जिसका नाम यूनिवर्सिटी आफ करप्शनस रखें जहाँ प्रैक्टिकल ट्रेनिग सेंटर भी बना लें ,जहाँ भ्रष्टाचार के गुर सिखाने कर साथ तथा पकड़े जाने पर बचने के हथकंडे भी सिखाएं लगता है देश रसातल में जाते जाते बच गया देश से कर्मवाद का सिद्धांत कहीं खो गया तुम भी खाओ हम भी खाए बेईमानी करो और करने दो यह सब शीर्ष पर बैठे नेताओं के उदासीन रवैये का फल है |
डॉ अशोक भारद्वाज
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